ऑटिज्म, जिसे मानसिक विकार माना जाता है, बच्चों से लेकर वयस्कों तक प्रभावित कर सकता है। हालांकि, कई लोग ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) से ग्रसित होने के बावजूद सामान्य जीवन जीते हैं। ऐसे व्यक्तियों में कुछ विशेषताएँ होती हैं, लेकिन साथ ही कुछ चुनौतियाँ भी होती हैं। जब ये चुनौतियाँ बढ़ जाती हैं, तो परिवार के साथ रहना मुश्किल हो सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि बचपन में इसका सही समय पर पता लगाया जाए, तो बच्चों को आवश्यक कौशल सिखाना आसान हो जाता है, जिससे उनकी जिंदगी में सुधार होता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, ऑटिज्म से प्रभावित व्यक्तियों में कुछ विशेषताएँ होती हैं, जो अन्य लोगों में नहीं पाई जातीं। हालांकि, कुछ कमियाँ भी हो सकती हैं, जो सामान्य जीवन जीने में बाधा डालती हैं। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि वर्तमान में ऑटिज्म का कोई निश्चित इलाज नहीं है, लेकिन विभिन्न प्रकार की थेरेपी से स्थिति में सुधार संभव है।
यदि कोई बच्चा माता-पिता या परिचितों को बुलाने पर प्रतिक्रिया नहीं करता है, तो यह एक चेतावनी संकेत हो सकता है। इसके अलावा, यदि बच्चा बातचीत के दौरान आँखों में आँखें नहीं डालता है या 9 महीने की उम्र में अपने नाम को पहचानने में असमर्थ है, तो यह भी चिंता का विषय है।
1.5 साल की उम्र में बच्चे का किसी चीज़ पर प्रतिक्रिया न करना, जैसे कि छिपकली या सूरज को देखकर इशारा न करना। 2 साल की उम्र में दूसरों की भावनाओं को समझने में कठिनाई होना। 3 साल की उम्र में अन्य बच्चों के साथ खेलने में रुचि न दिखाना। 4 साल की उम्र में कल्पना करने में असमर्थता। 5 साल की उम्र में गाने, नृत्य या अभिनय जैसी गतिविधियों में भाग न लेना।
इसके अलावा, कुछ व्यवहार जैसे कि बार-बार एक ही शब्द या वाक्य को दोहराना, एक ही प्रकार के खिलौनों से खेलना, या रूटीन में बदलाव को सहन न करना भी ऑटिज्म के संकेत हो सकते हैं।