त्रिपिटक क्या है: बौद्ध धर्म का मूल ग्रंथ और उसका महत्व

हाल ही में थाईलैंड की प्रधानमंत्री ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को त्रिपिटक भेंट किया। प्रधानमंत्री मोदी ने इसे सम्मानपूर्वक स्वीकार किया। उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष भारत से भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेष थाईलैंड भेजे गए थे और अब भारत ने घोषणा की है कि गुजरात के अरावली में वर्ष 1960 में प्राप्त बुद्ध के अन्य पवित्र अवशेष भी थाईलैंड भेजे जाएंगे।

इस मौके पर जिस त्रिपिटक ग्रंथ की चर्चा हुई, वह बौद्ध धर्म का अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र ग्रंथ है। आइए समझते हैं कि त्रिपिटक क्या है और इसका बौद्ध परंपरा में क्या महत्व है।

त्रिपिटक क्या है?

त्रिपिटक, बौद्ध धर्म का सबसे प्राचीन और मूल ग्रंथ है। यह पालि भाषा में रचित है और इसमें भगवान बुद्ध के उपदेश, उनके द्वारा स्थापित अनुशासन तथा दार्शनिक विचारों का संग्रह है।

“त्रिपिटक” का शाब्दिक अर्थ होता है – “तीन टोकरी”। इसका नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यह तीन प्रमुख भागों में विभाजित है, जो बौद्ध शिक्षा के तीन स्तंभों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

त्रिपिटक के तीन मुख्य भाग 1. विनय पिटक (अनुशासन संबंधी ग्रंथ)

यह भाग बौद्ध भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिए निर्धारित आचार संहिता और नियमों का संग्रह है।

  • इसमें भिक्षुओं के लिए 227 नियम और भिक्षुणियों के लिए 311 नियम वर्णित हैं।

  • बौद्ध संघ के संचालन, अनुशासन भंग करने पर दंड, और नैतिक सिद्धांतों की विस्तृत व्याख्या भी इसमें मिलती है।

2. सुत्त पिटक (बुद्ध के उपदेशों का संग्रह)

यह भाग भगवान बुद्ध के उपदेशों का संग्रह है, जिन्हें उन्होंने विभिन्न अवसरों पर अपने शिष्यों, राजाओं और आम जनता को दिए थे।

  • इसमें लंबे, मध्यम और छोटे उपदेश, कहानियां और सूत्र शामिल हैं।

  • उपदेशों को विषय और संख्याओं के आधार पर व्यवस्थित किया गया है।

3. अभिधम्म पिटक (दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक ग्रंथ)

यह खंड बौद्ध धर्म के दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक पक्षों पर केंद्रित है।

  • इसमें मन और चेतना, कर्म और पुनर्जन्म, मानसिक अवस्थाएं और उनके प्रभावों पर गहराई से चर्चा की गई है।

  • यह भाग बौद्ध दर्शन की तत्वमीमांसा को स्पष्ट करता है।

त्रिपिटक का महत्व
  • त्रिपिटक, बुद्ध की शिक्षाओं को संरक्षित और व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करता है।

  • यह ग्रंथ जीवन के नैतिक, आध्यात्मिक और बौद्धिक मार्गदर्शन का स्रोत है।

  • इसका अनुवाद संस्कृत, तिब्बती, चीनी और अंग्रेजी जैसी कई भाषाओं में हो चुका है, जो इसकी वैश्विक स्वीकार्यता को दर्शाता है।

  • इसमें अहिंसा, करुणा, ध्यान और मोक्ष जैसे मूल सिद्धांतों को विस्तार से समझाया गया है।

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